चालीसा..........
एक नया युग आनेवाला है,
मेरी उम्र का दशक बदलने वाला है
अब कोयल,कलरव,कोलाहल
मुझे उतने आकर्षित नहीं करते,
प्यार,खुमार,आलिंगन,
जीवन की परिभाषा वह नहीं गढ़ते,
जो बीस साल पहले चुनते थे
शब्द, एक मणिमाला बनाते थे,
मेरे आसपास का खाली व्योम,
सपनों से उकरते थे,
अब देते हैं सबके सब ठहराव,
गतिमान होने के लिए,
एक गति में बहने वाली धार,
जो अभी भी निश्छल है,
बेहद शांत,निर्भीक,अक्लांत।
कोशिश में रहती हूं,
जीवन का उजाला बनूं,
स्याह से दुविधाभरे मनों के बीच,
खुद किसी दुविधा में न घिर जाऊं,
बहती रहूं बेधड़क,
पीछे मुड़के देखने पर रास्ता भी न दिखे,
अपने साथ के रोड़े-पत्थर साथ ले तो चलूं,
पर किसी ऐसे किनारे छोड़ दूं मैं,
जहां उन्हें बड़ी चट्टानों का साथ मिले,
लहरों से लड़ने की सीख,और अपनों का उन्हें साथ मिले,
मैं तो नीर हूं, आज यहां तो कल कहीं चली जाऊंगी,
कभी-कभार सुगम और निर्मल रास्ता भी पाऊंगी।
शांत,व्यवस्थित,निष्कपट बनते रहें मेरे रास्ते,
यह मेरा शरीर खड़ा रहे हर किसी के वास्ते,
अंदर का क्रोध,अग्नि जलती रहे, बुझे न कभी,
लौ की तरह प्रकाशवान बने, चिंगारी नहीं,
अब सिमटना चाहती हूं, एक नई धार बनना चाहती हूं क्योंकि
बहुत कुछ बदलनेवाला है, एक नया युग आनेवाला है,
सुनो! मेरी उम्र का दशक बदलनेवाला है।
द्वारा - शिप्रा पाण्डे शर्मा, Facebook wall
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