---------- #मांञ् --'---
---#कवि__रमेश_कुमार_महतो
माञ्! माञ्! माञ्!
तोर दूधेक रीन हामे,
कभू सोधे पारब नाञ्!
हामर गूँह-मूतेक नूड़ा
उठावले आपन हाँथें,
घीन-बास लागल नाञ्
हामर लेल तोर गाते |
घार कारना करले माञ्
हामरा लइके कोरें काँखे,
हामर सुखेक लेल तोञ्
राखले आपन दुख नुकाय || माञ्..|
जाड़ेक समइ कनकनीं जखन
काँपइत हतोव तोर गात,
पेटेक तरें सुखे सपटाय
राखइत हबें सारा राइत |
निजें रइहके भूखे,हामरा
खियवल हबें पेट भोइर,
ढ़ाइप तोइपके राखल हबे
निजेक साध-हिंच्छा तोइर |
तोर छाड़ा जिंदगीं हामर
केउ भगवान कोन्हों नाञ् || माञ्..|
आपन कोखे राखले माञ्
हामरा नौ - दस मास,
पेटेक भीतरे खियाइ पोंसलें
आपन गातेक रकत-मांस |
तोर सिरजले हामे पाइलो
तोरा माञेक रूपे खाँटी,
हामर गाते मास चढ़ाइले
निजेक रकत-मांस बाँटी |
तोर रूपें देखे पाइलों
हाम गोटे दुनियाइ || माञ्..|
सास-ससुर, ननद सबके
सहइत हबे गाइर-माइर,
गोरु-लेरु घार कारना सब
करइत हबे सभे साइर |
हामर करल गुन्हाक लेल
तोञ् कते सुनल हबे बात,
कते बेर रागें - रुसे
तोर पड़ल हतोउ गात |
तोञ् सिरजले हामरा
हामें पइलो तोरा माञ्,
नेम-बरत तीरिथ-पूजा
तोहीं हामर गोटे दुनियाय || माञ्..|
..............#रमेश_कुमार_महतो...........
Thursday, April 19, 2018
मांञ्
ज़िन्दगी
*दर्द कागज़ पर,*
*मेरा बिकता रहा,*
*मैं बैचैन था,*
*रातभर लिखता रहा..*
*छू रहे थे सब,*
*बुलंदियाँ आसमान की,*
*मैं सितारों के बीच,*
*चाँद की तरह छिपता रहा..*
*अकड होती तो,*
*कब का टूट गया होता,*
*मैं था नाज़ुक डाली,*
*जो सबके आगे झुकता रहा..*
*बदले यहाँ लोगों ने,*
*रंग अपने-अपने ढंग से,*
*रंग मेरा भी निखरा पर,*
*मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*
*जिनको जल्दी थी,*
*वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*
*मैं समन्दर से राज,*
*गहराई के सीखता रहा..!!*
*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*
*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*
*कुछ बेतुके झगड़े*,
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*
*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*,
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*
*🙏🙏🙏 शुभ,दिन🙏🙏🙏*
Tuesday, April 17, 2018
मेरी उम्र का दशक
चालीसा..........
एक नया युग आनेवाला है,
मेरी उम्र का दशक बदलने वाला है
अब कोयल,कलरव,कोलाहल
मुझे उतने आकर्षित नहीं करते,
प्यार,खुमार,आलिंगन,
जीवन की परिभाषा वह नहीं गढ़ते,
जो बीस साल पहले चुनते थे
शब्द, एक मणिमाला बनाते थे,
मेरे आसपास का खाली व्योम,
सपनों से उकरते थे,
अब देते हैं सबके सब ठहराव,
गतिमान होने के लिए,
एक गति में बहने वाली धार,
जो अभी भी निश्छल है,
बेहद शांत,निर्भीक,अक्लांत।
कोशिश में रहती हूं,
जीवन का उजाला बनूं,
स्याह से दुविधाभरे मनों के बीच,
खुद किसी दुविधा में न घिर जाऊं,
बहती रहूं बेधड़क,
पीछे मुड़के देखने पर रास्ता भी न दिखे,
अपने साथ के रोड़े-पत्थर साथ ले तो चलूं,
पर किसी ऐसे किनारे छोड़ दूं मैं,
जहां उन्हें बड़ी चट्टानों का साथ मिले,
लहरों से लड़ने की सीख,और अपनों का उन्हें साथ मिले,
मैं तो नीर हूं, आज यहां तो कल कहीं चली जाऊंगी,
कभी-कभार सुगम और निर्मल रास्ता भी पाऊंगी।
शांत,व्यवस्थित,निष्कपट बनते रहें मेरे रास्ते,
यह मेरा शरीर खड़ा रहे हर किसी के वास्ते,
अंदर का क्रोध,अग्नि जलती रहे, बुझे न कभी,
लौ की तरह प्रकाशवान बने, चिंगारी नहीं,
अब सिमटना चाहती हूं, एक नई धार बनना चाहती हूं क्योंकि
बहुत कुछ बदलनेवाला है, एक नया युग आनेवाला है,
सुनो! मेरी उम्र का दशक बदलनेवाला है।
द्वारा - शिप्रा पाण्डे शर्मा, Facebook wall
जाग री
जाग री........
पता नहीं क्यों सुबह से ही लिखने का मन कर रहा था। यह तो नहीं जानती कि इस कविता का बसंत से क्या मेल है, पर बिना लिखे भी नहीं रहा जा रहा। हो सकता है, कि छायावादी ऋतुओं का अवसान ही बसंत का आगमन है, पर यह बहुत ही प्रेरणादायी है। आशा है, हम सभी के जीवन में यह कविता कहीं-न-कहीं सटीक बैठती होगी। पर आज के दिन इस कविता ने मेरे भीतर सुर पकड़ा हुआ है, आप भी इसे पढ़िये।
बीती विभावरी जाग री।
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री!
द्वारा - शिप्रा पाण्डे शर्मा, Facebook wall
Sunday, April 15, 2018
शिक्षक धर्मसंकट
छठी के छात्र छेदी ने छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई, गुरुजी ने छडी उठाई और मारने वाले ही थे की छेदी ने कहा, "खबरदार अगर मुझे मारा तो! मैं गिनती नही जानता मगर उत्पीडन अधिनियम की धाराएँ अच्छी तरह जानता हूँ.
गणित मे नही, हिंदी मे समझाना आता है."
गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जडवत हो गए. जो कल तक बोल नही पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है!
शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक भी उधर आ धमके. कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नही हुआ था. वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे. इसी कारण से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर दिया था. आते ही उन्होंने छडी को तोड़ कर बाहर फेंका और बोले "सरकार का आदेश नही पढ़ा? प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है. रिटायरमेंट नजदीक है, निलंबन की मार पड़ गई तो पेंशन के फजीते पड़ जाएँगे. बच्चे न पढ़े न सही, पर प्रेम से पढ़ाओ. उनसे निवेदन करो. अगर कही शिकायत कर दी तो ?"
बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए. मानो हर बूँद से प्रायश्चित टपक रहा हो! इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" और बाकी बच्चे भी उसके साथ हो लिए.
प्रधानाध्यापक ने छेदी को एक कोने मे ले जाकर कहा, "मुझसे कहो क्या चाहिए?"
छेदी बोला, "जब तक गुरुजी मुझसे माफी नही माँग लेते है, हम विद्यालय का बहिष्कार करेंगे. बताए की शिकायत पेटी कहाँ है?"
समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित और भय का वातावरण हो चुका था. छात्र जान चुके थे की उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है।
बड़े सर ने छेदी से कहा की मैं उनकी तरफ से माफी माँगता हूँ, पर छेदी बोला, "आप क्यों मांगोगे ? जिसने किया वही माफी माँगे, मेरा अपमान हुआ है।"
आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था। जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दंड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तिया परास्त हो चुकी थी।वे इतने भयभीत हो चुके थे की एकांत मे छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से गुरूता के ग्राफ को गिराना नही चाहते थे। छडी के संग उनका मनोबल ही नही, परंपरा और प्रणाली भी टूट चुकी थी।सारी व्यवस्था,नियम, कानून एक्सपायर हो चुके थे। कानून क्या कहता है, अब ये बच्चो से सिखना पड़ेगा!
पाठ्यक्रम में अधिकारों का वर्णन था, कर्तव्यों का पता नही था। अंतिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!
वे प्रण कर चुके थे की कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे।तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मैं आपको समझ रहा हूँ।वह मान गया है और अंदर आ रहा है।उससे माफी माँग लो, समय की यही जरूरत है।"
छेदी अंदर आकर टेबल पर बैठ गया और हवा के तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए।
कलम को चाहिए कि यही थम जाए।कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है।
आजकल के गुरू का दर्द.....किस तरह पढ़ाये बच्चों को...पढ़ाना मुश्किल हो गया है...और जमाना कहता है...मास्टर पढ़ाते नहीं हैं...फोकट की तनख्वाह लेते हैं....।
Friday, April 13, 2018
अच्छे तो ये "बुरे दिन" हैं
🈳🈳•• जिसने भी लिखा है दिल से सलाम
🇧🇦=दोस्तो कल रात को एक
सपना आया मैंने देखा
कि मेरे मोबाइल में
SMS आया है.......
👉कि भारत सरकार ने 50
लाख रुपये मेरे "जन धन
योजना वाले बैंक खाते मैं
डिपाजिट कर दिए है.
👉 मैं बड़ी ख़ुशी से उछलता
हुआ कमरे से बाहर आया
और
सबको बोला--देखो देखो
अच्छे दिन आ गए..
👉मेरे र अकाउंट में 50
लाख आ गए"
➖घर वाले बोले ज्यादा खुश
न हो हमारे सबके खाते में
भी 50 लाख आये है ये
देखो..
👉कसम से बड़ा दुःख हुआ
मुझे..
👉फिर सोचा चलो दोस्तों को
दिखाता हूँ..
👉दोस्त बोले ज्यादा ना
उछल हमारे खाते में भी 50
लाख हैं..
➖सारी ख़ुशी फिर गायब..
👉फिर सोचा चलो दूकान पर
खूब सामान लेता हूँ..
🔰🔰
🚥भाई साहब ये रामू चाचा
की दूकान क्यों बंद है== 👉एक आदमी बोला--भाई
रामू चाचा ने तो दूकान बंद
कर दी उन्हें अब दूकान
की क्या जरूरत..??
👉उनके खाते में तो 50
लाख आ गएे हैं अब काम
नही करना पड़ेगा उन्हैं..
👉 फिर सोचा चलो शॉपिंग
माल में चलता हूँ..
👉वहां देखा तो सब दुकान
बंद थी उन लोगों को भी
50 लाख मिल गए थे.....
👉सोचा कोई बात नही
होटल में खूब खाना खाता
हूँ, अपनी पसन्द का..
👉अंदर देखा सब लोग जा
चुके थे, सिक्यूरिटी गार्ड
भी नही था मतलब वो भी
अमीर बन गया था उसके
पास भी अब 50 लाख थे
👉बाजार गया तो सब रेहड़ी
वाले चाय वाले
जूस वाले, सब्जी वाले
सब काम छोड़कर बैंक में
जा चुके थे रूपये लेने.. 👉क्योंकि अब किसी को
काम करने की कोई
जरूरत नही थी सबके
पास "50 लाख" रूपये थे.
🔰🔰
🚥शहर से बाहर गया तो सब
फैक्ट्री, बंद सब मजदूरों
को 50 लाख मिल चुके थे. 👉सब नाच गा रहे थे..
----अच्छे दिन आ गए...
----अच्छे दिन आ गए...
👉शाम को खेतो की तरफ
गया तो खेत में कोई नही
था सब किसान खेती
छोड़ कर घर जा चुके थे.. 👉अब उनको धुप बारिश में
काम करने की कोई
जरूरत नही थी,
➖वो भी अमीर बन चुके थे.. 👉हास्पिटल गया, देखा वहां
डॉक्टर ताश खेल रहे थे. =पूछने पर बोले हमे कोई
इलाज़ नही करना अब 50
लाख काफी हैं..
👉जीवन भर के लिए....
🔰🔰
🇧🇦--फिर 5 दिन बाद पता
चला अचानक लोग भूख
से मरने लगे है...
क्योंकि
👉खेत में सब्जी नही उग रही
है..
👉सब राशन की दुकान बंद
है..
👉होटल ढ़ाबे भी बंद पड़े है.
👉लोग बीमारी से मरने लगे
हैं..
क्योंकि
👉डॉक्टर भी नही हैं..
पशु भी भूख से मर रहे है..
खेत से चारा नही मिल रहा.
बच्चे भी भूख से रो रहे है. क्योंकि पशु दूध नही दे रहे.. 👉लोग सड़को पर भागे
फिर रहे है 1-1 लाख
रूपये हाथ में लिए ये लो
भाई 50 हज़ार रूपये
100 ग्राम दूध दे दो.
👉दो दिन से बच्चा भूख से
मर रहा है..
👉फिर 10 दिन बाद लोग
मरने लगे..
👉कुछ जिन्दा लोग सड़कों
पर रुपयों का बेग लिए
घूम रहे है, भाई ये लो ये
लो 5 लाख रूपये हमे
बस 5 किलो गेहूं दे दो..
10 दिन से भूखे हैं..
👉सब बाजार बंद हो चुके है
अनाज नही है किसी के
पास.....
👉सब तरफ मुर्दा लोग दिख
रहे है
👉और मैं भी अपने "50
लाख" रूपये लिए भागा
जा रहा हूँ..
👉 ले लो भाई ले लो ये "50
लाख"
➖बस रोटी का एक टुकड़ा
दे दो..
🔰🔰
=इतने में माँ की आवाज़
आई.........
👉उठ जा कमीने कब से
चारपाई को लात मार रही
हूं..
🚥मां बोली➖मर गया मर
गया की आवाज़ लगा रहा
है,, कोई बुरा सपना देखा
क्या....?
👉मैं बोला--नही माँ बुरा नही
"अच्छे दिनो" का सपना
देखा..
➖उनसे अच्छे तो ये "बुरे
दिन" हैं
👉गरीब सही मगर घर में
==अनाज तो है,,
==पानी है,,
==बच्चे खेल रहे हैं,,
==पशु खेत में चर रहे हैं,,
==दुकानों पर भीड़ है,,
==लोग आ जा रहे हैं,,
🚥चल पड़ा मैं भी अपने
काम पर ये सोचते हुए..
👉काश•••• ये "50 लाख"
कभी भी किसी के खाते
में न आये तो अच्छा है.. 👉वरना फिर काम कौन
करेगा जब सबके पास
"50 लाख" होंगे..
🚥देश को नहीं,
पहले खुद को बदलें.
अग्निशमन
छोटी-सी फ्रॉक पहनूं,
या पहनूं पैंट-शर्ट,क्या फर्क पड़ता है,
देखते हैं लोग मुझे सिर्फ एक ही नज़र से,
घूरते हैं भेड़ियों से, निगाहें कोटर में डाले,
करूं क्या मैं अपनी उम्र का,
बचपन है मेरा, ये जनाज़ा जो निकाले
कभी मेरी फिक्र के नाम पर, कभी इज्जत,
तो कभी सभ्यता का हवाले,
छलनी ही हो रही हूं समुदायभर में,
किंचित कोई कृष्ण हो जो संभाले।
क्या फर्क पड़ता है कि कमीज के साथ
मैं चुन्नी जो डालूं,
उभरता शरीर है मेरा, अरे मैं क्यों किसी से छिपा लूं?
छिपा लो तुम शर्म,लज्जा अपनी जो टप-टप गिर रही है,
राह चलती हर ह़या पर जो हरपल मर रही है,
जिंदा हो तुम, वैसाखी के सहारे चल रहे हो,
मेरी चिंता छोड़ तो, तुम जिंदा चिता में जल रहे हो।
कभी सोचा है किंचितप्राय ,क्या कुछ बचा है,
भीतर झांक के देखो, मृतप्राय तू खड़ा है,
जो भी है तू, आदमी, मर्दानगी का नाप जपता,
नारी,ना रही, तो तू कैसे बनता,
आंखों से लेकर वीर्य तक में तेरे खून उतरा
बाग से लेकर बियाबां तक फूल कुतरा,
कहां जायें,कहां कूचें,हम अब इस जहां में,
बिना जीवन जीये ही अग्नि में खुद को लील डाले
दुराचारी तू अपने भीतर की ज्वाला का खुद शमन कर
अपमान मत कर नारी का,तू यह चयन कर
हर मां, हर एकपल नहीं तो बस यह कहेगी,
आज से मेरी कोख सूनी ही रहेगी।
Tuesday, April 10, 2018
तमाचा
*" सुरेन्द्र शर्मा "*की कविता जो दिल को छू गई*
*एक कमरा था*
*जिसमें मैं रहता था*
*माँ-बाप के संग*
*घर बड़ा था*
*इसलिए इस कमी को*
*पूरा करने के लिए*
*मेहमान बुला लेते थे हम!*
*फिर विकास का फैलाव आया*
*विकास उस कमरे में नहीं समा पाया*
*जो चादर पूरे परिवार के लिए बड़ी पड़ती थी*
*उस चादर से बड़े हो गए*
*हमारे हर एक के पाँव*
*लोग झूठ कहते हैं*
*कि दीवारों में दरारें पड़ती हैं*
*हक़ीक़त यही*
*कि जब दरारें पड़ती हैं*
*तब दीवारें बनती हैं!*
*पहले हम सब लोग दीवारों के बीच में रहते थे*
*अब हमारे बीच में दीवारें आ गईं*
*यह समृध्दि मुझे पता नहीं कहाँ पहुँचा गई*
*पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था*
*अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं*
*फिर हमने बना लिया एक मकान*
*एक कमरा अपने लिए*
*एक-एक कमरा बच्चों के लिए*
*एक वो छोटा-सा ड्राइंगरूम*
*उन लोगों के लिए जो मेरे आगे हाथ जोड़ते थे*
*एक वो अन्दर बड़ा-सा ड्राइंगरूम*
*उन लोगों के लिए*
*जिनके आगे मैं हाथ जोड़ता हूँ*
*पहले मैं फुसफुसाता था*
*तो घर के लोग जाग जाते थे*
*मैं करवट भी बदलता था*
*तो घर के लोग सो नहीं पाते थे*
*और अब!*
*जिन दरारों की वजह से दीवारें बनी थीं*
*उन दीवारों में भी दरारें पड़ गई हैं।*
*अब मैं चीख़ता हूँ*
*तो बग़ल के कमरे से*
*ठहाके की आवाज़ सुनाई देती हैं*
*और मैं सोच नहीं पाता हूँ*
*कि मेरी चीख़ की वजह से*
*वहाँ ठहाके लग रहे हैं*
*या उन ठहाकों की वजह से*
*मैं चीख रहा हूँ!*
*आदमी पहुँच गया है चांद तक,*
*पहुँचना चाहता है मंगल तक*
*पर नहीं पहुँच पाता सगे भाई के दरवाज़े तक*
*अब हमारा पता तो एक रहता है*
*पर हमें एक-दूसरे का पता नहीं रहता*
*और आज मैं सोचता हूँ*
*जिस समृध्दि की ऊँचाई पर मैं बैठा हूँ*
*उसके लिए मैंने कितनी बड़ी खोदी हैं खाइयाँ....*
*अब मुझे अपने बाप की बेटी से*
*अपनी बेटी अच्छी लगती है*
*अब मुझे अपने बाप के बेटे से*
*अपना बेटा अच्छा लगता है*
*पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था*
*अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं*
*अब मेरा बेटा भी कमा रहा है*
*कल मुझे उसके साथ रहना पड़ेगा*
*और हक़ीक़त यही है दोस्तों*
*तमाचा मैंने मारा है*
*तमाचा मुझे खाना भी पड़ेगा....!*
🤔🤔🤔☹☹☹
तुम लगते हो
वो जो तुम चुप से लैपटॉप पर
चिपके पड़े रहते हो,एकदम फुस्स से दिखते हो,
फ्यूजड़,कनफ्यूजड़ और सिर झुकाए,
एकदम भी सही नहीं लगते,
सही लगते हो जब मेरी एक ही फोटो को निहार,
उसपर अपना ठेंगुआ दबा देते हो।
वेब पेज के पन्ने पलटते,
जब कभी चौंक के भौंहे चढ़ा लेते हो,
और कभी किसी वाहियात से चुटकुले को पढ़,
मंद-मंद मुसकाते हो,
तब भी तुम उतने अच्छे नहीं लगते,
पर जब अकेले में बैठ दो कप चाय की गुहार
लगाते हो, सच में तब तुम, तुम लगते हो।
कभी ऐनी,कभी टेनी,कभी रिंकी,कभी पिंकी
से जब तुम घंटों फोन पर हूं-हां बतियाते हो,
या कभी कमरे में बंद कर खुद को,
किसी गहन मुद्दे पर सिर खपाते हो,
अच्छे नहीं लगते सच्ची, मैं सिर पीटकर रह जाती हूं,
पर जब फोन के चार्जर के बहाने मुझको पास बुलाते हो,
तब लगते हो,कुछ खाली-से,और मेरी खुशबू से ही भर जाते हो।
तुम्हारे इस खाली उपवन में,कुछ घासें जो उग आई हैं,
बिना फूल के देखो तो, ये कितनी मुरझाई हैं,
कोई भंवरा नहीं इनमें, न ही मधुमक्खी इठलाती है,
छी, कैसा मधुमास यहां, मुझको ये न भाती हैं,
पर पास बैठ जब ये उपवन खुद लहर-लहर लहराते हैं,
फिर क्या लैपटॉप, चाय के कुल्हड़, पास फटक नहीं पाते हैं,
तब लगता है तुम यहीं कहीं हो पास मेरे,
इस कंधे में हो सिर मेरा, और दूर रहें ये काम मेरे।
Saturday, April 7, 2018
बाली का हनुमानजी को ललकारना
जय श्री राम, जय श्री राम,,
कथा का आरंभ तब का है ,,
जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,
उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,
और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,
सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,
और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,
बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,
रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,
अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,
और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,
अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,
हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,
अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,
एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,
और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,
इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,
संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,
बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,
और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,
हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,
तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,
क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,
इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,
और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,
इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,
और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,
जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,
और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,
और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,
मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,
और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,
हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,
बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,
बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,
हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,
बाली- तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,
हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,
बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,
अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,
ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,
और युद्ध के लिए न जाओ,
हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,
तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,
उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,
और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,
पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,
हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,
ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,
उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,
बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,
बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,
बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,
तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,
बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,
सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,
कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,
हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,
मुझे कुछ समझ नही आया,,
ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,
बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,
ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,
मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,
सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,
इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,
और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,
ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,
ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,
और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,
तो बोलो,
पवनपुत्र हनुमान की जय,
जय श्री राम जय श्री राम,,
🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹
कृपया ये कथा जन जन तक पहुचाएं,
और पुण्य के भागी बने,,
जय श्री राम जय हनुमान,