Saturday, November 9, 2019

आओ कोई बात करते हैं

*आओ किसी का यूँही, इंतजार करते हैं..!*
*चाय बनाकर फिर, कोई बात करते हैं..!!*

*उम्र पचास के पार, हो गई हमारी..!*
*बुढ़ापे का, इस्तक़बाल करते है..!!*

*कौन आएगा अब, हमको देखने यहां..!*
*एक दूसरे की, देखभाल करते है..!!*

*बच्चे हमारी पहुंच से, अब दूर हो गए..!*
*आओ फिर से दोस्तो को, कॉल करते हैं..!!*

*जिंदगी जो बीत गई, सो बीत गई..!*
*बाकी बची में फिर से, प्यार करते हैं..!!*

*खुदा ने जो भी दिया, लाजवाब दिया..!*
*चलो शुक्रिया उसका, बार बार करते हैं..!!*

*सभी का हाल यही है, इस जमाने में..!*
*ग़ज़ल ये सबके, नाम करते हैं,*

Friday, November 8, 2019

किवाड़

*क्या आपको पता है ?*
*कि किवाड़ की जो जोड़ी होती है,*
*उसका एक पल्ला पुरुष और,*
 *दूसरा पल्ला स्त्री होती है।*

*ये घर की चौखट से जुड़े - जड़े रहते हैं।*
*हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।*
*खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।*
*भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।*

*एक रात उनके बीच था संवाद।*
*चोरों को लाख - लाख धन्यवाद।।*
*वर्ना घर के लोग हमारी ,*
*एक भी चलने नहीं देते।*
*हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं,*
*हमें ये मिलने भी नहीं देते।।*

*घर की चौखट से साथ हम जुड़े हैं,*
*अगर जुड़े जड़े नहीं होते।*
*तो किसी दिन तेज आंधी -तूफान आता,* 
*तो तुम कहीं पड़ी होतीं,*
*हम कहीं और पड़े होते।।*

*चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है।*
*वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है।।*

*इस घर में यह जो झरोखे ,*
*और खिड़कियाँ हैं।*
*यह सब हमारे लड़के,*
 *और लड़कियाँ हैं।।*
*तब ही तो,*
*इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं।*
*पूरे घर में जीवन रचा बसा रहे,*
*इसलिये ये आती जाती हवा को,*
*खेल ही खेल में ,*
*घर की तरफ मोड़ देते हैं।।*

*हम घर की सच्चाई छिपाते हैं।*
*घर की शोभा को बढ़ाते हैं।।*
*रहे भले कुछ भी खास नहीं ,* 
*पर उससे ज्यादा बतलाते हैं।*
*इसीलिये घर में जब भी,*
 *कोई शुभ काम होता है।*
*सब से पहले हमीं को,*
 *रँगवाते पुतवाते हैं।।*

*पहले नहीं थी,*
*डोर बेल बजाने की प्रवृति।*
*हमने जीवित रखा था जीवन मूल्य,* 
*संस्कार और अपनी संस्कृति।।*

*बड़े बाबू जी जब भी आते थे,*
*कुछ अलग सी साँकल बजाते थे।*
*आ गये हैं बाबूजी,*
*सब के सब घर के जान जाते थे ।।*
*बहुयें अपने हाथ का,*
 *हर काम छोड़ देती थी।*
*उनके आने की आहट पा,*
*आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।।*

*अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में,*
*किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के।*
*घर नहीं अब फ्लैट हैं ,*
*गेट हैं इक पल्ले के।।*
*खुलते हैं सिर्फ एक झटके से।*
*पूरा घर दिखता बेखटके से।।*

*दो पल्ले के किवाड़ में,*
*एक पल्ले की आड़ में ,*
*घर की बेटी या नव वधु,*
*किसी भी आगन्तुक को ,*
*जो वो पूछता बता देती थीं।*
*अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।*

*अब तो धड़ल्ले से खुलता है ,*
*एक पल्ले का किवाड़।*
*न कोई पर्दा न कोई आड़।।*
*गंदी नजर ,बुरी नीयत, बुरे संस्कार,*
*सब एक साथ भीतर आते हैं ।*
*फिर कभी बाहर नहीं जाते हैं।।*

*कितना बड़ा आ गया है बदलाव?*
*अच्छे भाव का अभाव।*
 *स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव।।*

*सब हुआ चुपचाप,*
*बिना किसी हल्ले गुल्ले के।*
*बदल दिये ये किवाड़,*
*हर घर के मुहल्ले के।।*

*अब घरों में दो पल्ले के ,*
*किवाड़ कोई नहीं लगवाता।*
*एक पल्ली ही अब,*
*हर घर की शोभा है बढ़ाता।।*

*अपनों में नहीं रहा वो अपनापन।*
*एकाकी सोच हर एक की है ,* 
*एकाकी मन है व स्वार्थी जन।।*
*अपने आप में हर कोई ,*
*रहना चाहता है मस्त,*
 *बिल्कुल ही इकलल्ला।*
*इसलिये ही हर घर के किवाड़ में,*
*दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला!!*

वक़्त नहीं

हर  ख़ुशी   है  लोंगों   के  दामन  में
पर   एक   हंसी  के  लिये  वक़्त  नहीं

दिन  रात   दौड़ती   दुनिया   में 
ज़िन्दगी   के   लिये  ही   वक़्त नहीं

सारे   रिश्तों  को   तो  हम  मार चुके
अब   उन्हें   दफ़नाने  का   भी वक़्त  नहीं 

सारे   नाम   मोबाइल   में   हैं  
पर   दोस्ती   के   लिये   वक़्त  नहीं 

गैरों   की   क्या   बात  करें  
जब   अपनों   के   लिये    ही वक़्त  नहीं

आखों   में   है   नींद  भरी  
पर   सोने   का  वक़्त   नहीं

दिल  है  ग़मो  से  भरा  हुआ  
पर  रोने  का   भी   वक़्त   नहीं  

पैसों   की  दौड़  में   ऐसे   दौड़े की
थकने   का  भी   वक़्त   नहीं 

पराये  एहसानों   की  क्या   कद्र  करें  
जब  अपने   सपनों   के   लिये  ही  वक़्त  नहीं

तू   ही   बता  दे  ऐ   ज़िन्दगी  
इस   ज़िन्दगी   का   क्या  होगा 
की   हर   पल   मरने   वालों  को
जीने    के    लिये  भी    वक़्त  नहीं 
 📖

Friday, November 1, 2019

छठ महापर्व

*छठ पर्व*
*दुनिया का इकलौता ऐसा पावन पर्व जिसकी महत्ता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है*।आज ये पर्व हिंदुस्तान ,मलेशिया के अलावे लंदन,अमेरिका में भी बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है।
*ये छठ पूजा जरुरी है*
*धर्म के लिए नहीं*,
*अपितु*..
हम-आप सभी के लिए
जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं ।
अपनी परंपरा, सभ्यता,संस्कृति, परिवार से दूर होते जा रहे है।

*ये छठ जरुरी है*
उन बेटों के लिए
जिनके घर आने का ये बहाना है ।

*ये छठ जरुरी है* 
उस माँ के लिए
जिन्हें अपनी संतान को देखे
महीनों हो जाते हैं,
उस परिवार के लिये
जो आज टुकड़ो में बंट गया है ।

*ये छठ जरुरी है*
उस आजकल की नई बहु/पुतोहु
 के लिए
जिन्हें नहीं पता कि
दो कमरों से बड़ा भी घर होता है ।

*ये छठ जरुरी है*
उनके लिए जिन्होंने नदियों को
सिर्फ किताबों में ही देखा है ।

*ये छठ जरुरी है*
उस परंपरा को ज़िंदा रखने के लिए
जो समानता की वकालत करता है ।

*ये छठ जरुरी है*
जो बताता है कि
बिना पुरोहित/ब्राह्मण भी पूजा हो सकती है ।

*ये छठ जरुरी है*
जो सिर्फ उगते सूरज को ही नहीं
डूबते सूरज को भी प्रणाम करना सिखाता है ।

*ये छठ जरुरी है*
गागर , निम्बू और सुथनी जैसे
फलों को जिन्दा रखने के लिए ।

*ये छठ जरुरी है*
सूप और दउरा को
बनाने वालों के लिए,
ये बताने के लिए कि,
इस समाज में उनका भी महत्व है ।

*ये छठ जरुरी है*
उन दंभी पुरुषों के लिए
जो नारी को कमज़ोर समझते हैं ।

*ये छठ जरुरी है*
भारतीयों के योगदान
और हिन्दुओ के सम्मान  के लिए ।

*ये छठ जरुरी है*
सांस्कृतिक विरासत और आस्था को
बनाये रखने के  लिए ।

*ये छठ जरुरी है*
परिवार तथा  समाज में 
एकता एवं एकरूपता के लिए ।

            II जय छठी मैया।।
    🙏🙏 जय छठी मईया 🙏🙏