Friday, March 30, 2018

True happiness

🌸🙏🌸
The Musk Deer Does Not Know That The Fragrance Of Musk Is Emanating From it's Own Navel. It Wanders About Here And There To Find Out The Source Of This Smell. Even So, The Deluded, Ignorant Man Is Not Aware That The Fountain Of Bliss Is Within Himself. He Is Running After External Perishable Objects To Get Happiness. Each Time You Search For Happiness Outside Of yourself, You Wander Away From It's Real Source. Turn Inward. The Highest Happiness Can Be Had Through Realization Of Self. Whereas Pleasure Depends On The Nervous System, Mind And Sense Objects, True Happiness Is Independent And Self Existent - It Is In Yourself.                                                                                  *Life's Little Instructions for the Day*
There is no unique picture of reality. "If you love something let it go. If it comes back to you it's yours. If it doesn't, it never was."
🙏
स्वस्थ रहें, मस्त रहें एवं संतुष्ट रहें...😊
🙏
*हाँ, 1 बात और, सदा मुस्कुराते रहें...😊*
🙏

Wednesday, March 14, 2018

तुम्हारी यही अदा तो दिल को भा गईं

पत्नी  मायके जाती है और मज़े लेने के लिये पति को मैसेज भेजती है:

"मेरी मोहब्ब्त को अपने दिल में ढूंढ लेना;
और हाँ, आटे को अच्छी तरह गूँथ लेना!

मिल जाए अगर प्यार तो खोना नहीं;
प्याज़ काटते वक्त बिलकुल रोना नहीं!

मुझसे रूठ जाने का बहाना अच्छा है;
थोड़ी देर और पकाओ आलू अभी कच्चा है!

मिलकर फिर खुशियों को बाँटना है;
टमाटर जरा बारीक़ ही काटना है!

लोग हमारी मोहब्ब्त से जल न जाएं;
चावल टाइम पे देख लेना कहीं गल न जाएं!

कैसी लगी हमारी ग़जल बता देना;
नमक कम लगे तो और मिला लेना!

     😜😜😜😜😜😜😜😜
         पति का सुपर रिप्लाई:

तुम्हारी यही अदा तो दिल को भा गईं..
तुम्हारे जाते ही,  पड़ोसन खाना पकाने आ गई ..
😊😊😊😊 😇😇😇😇🤗🤗

पत्नी 120 के स्पीड से घर वापस आ गयी।

😜😜😷😷😆😆😋

Monday, March 12, 2018

पति एक नंबर के झूठे होते हैं


सच में पति एक नंबर के झूठे होते हैं

कहते हैं छोड़कर चला जाऊँगा किसी दिन
और एक दिन भी
हमारे बिना रह नहीं पाते हैं

सारा दिन फोन पर लगी रहती हो
नोकिया बारहसौ लाऊँगा कहकर
लेटेस्ट स्मार्ट फोन दिलाते हैं

जितना चाहे खाने में नुक्स निकालें
मगर दावतें छोड़कर
खाना घर का ही खाते हैं

हमारी ख्वहिशों पर
मजबूरियाँ और खर्चे गिनाते हैं
पर जब तक पूरी न करदें वो भी चैन नहीं पाते हैं

हमारी खुशी पर वो जहाँ की दौलत लुटाते हैं
पर हमारे एक आँसू पे
धड़कन और साँसें थाम जाते हैं

अपनी गलती पे भी वो
अक्सर हमको ही झुकाते हैं
मगर रोता है दिल उनका हमें जब आँसू आते हैं

कोई आफिस में कोई सुंदर सी है
बता कर जब जलाते हैं
निगाहों में हमीं होते हैं जब वो मुस्कुराते हैं

बहिन भाई दोस्त रिश्तेदार
सभी को यूँ तो चाहते हैं
पर सोचकर पत्नी के सिवा सबको भूल जाते हैं

बड़े ही सख्त रहते हैं, जीतते हैं दबाते हैं
मगर दिल ही दिल में जीते हैं
जिसके लिए उसी से हार जाते हैं

जब तक जवान हो तुम,
तो बुड़ढी तुम्हे बताते हैं
बुढ़ापे में संगिनी को हसीन बेहद बताते हैं
सच में पति एक नंबर के झूठे होते हैं

Friday, March 9, 2018

पता हीं नहीं चला

*💙 समय चला, पर कैसे चला... 💙*
            *पता ही नहीं चला...*

       *जिन्दगी कैसे गुजरती गई...*
            *पता ही नहीं चला...*
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🙏कविता के लेखक को मेरा प्रणाम🙏
_______________________________

ज़िन्दगी की आपाधापी में,
कब निकली उम्र हमारी,
*पता ही नहीं चला।*

कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे,
कब कंधे तक आ गए,
*पता ही नहीं चला।*

किराये के घर से
शुरू हुआ सफर,
अपने घर तक आ गया,
*पता ही नहीं चला।*

साइकिल के
पैडल मारते हुए,
हांफते थे उस वक़्त,
अब तो
कारों में घूमने लगे हैं,
*पता ही नहीं चला।*

हरे भरे पेड़ों से
भरे हुए जंगल थे तब,
कब हुए कंक्रीट के,
*पता ही नहीं चला।*

कभी थे जिम्मेदारी
माँ बाप की हम,
कब बच्चों के लिए
हुए जिम्मेदार हम,
*पता ही नहीं चला।*

एक दौर था जब
दिन में भी बेखबर सो जाते थे,
कब रातों की उड़ गई नींद,
*पता ही नहीं चला।*

बनेंगे कब हम माँ बाप
सोचकर कटता नहीं था वक़्त,
कब हमारे बच्चे बच्चों वाले होने योग्य हो गए,
*पता ही नहीं चला।*

जिन काले घने
बालों पर इतराते थे हम,
कब रंगना शुरू कर दिया,
*पता ही नहीं चला।*

होली और दिवाली मिलते थे,
यार, दोस्तों और रिश्तेदारों से,
कब छीन ली प्यार भरी
मोहब्बत आज के दौर ने,
*पता ही नहीं चला।*

दर दर भटके हैं,
नौकरी की खातिर ,
कब रिटायर होने का समय आ गया
*पता ही नहीं चला।*

बच्चों के लिए
कमाने, बचाने में
इतने मशगूल हुए हम,
कब बच्चे हमसे हुए दूर,
*पता ही नहीं चला।*

भरे पूरे परिवार से
सीना चौड़ा रखते थे हम,
कब परिवार हम दो पर सिमटा,
*।।। पता ही नहीं चला ।।।*

बचपन

बचपन मे 1 रु. की पतंग के पीछे
२ की.मी. तक भागते थे...
न जाने कीतने चोटे लगती थी...

वो पतंग भी हमे बहोत दौड़ाती थी...

आज पता चलता है,
दरअसल वो पतंग नहीं थी;
एक चेलेंज थी...

खुशीओं को हांसिल करने के लिए दौड़ना पड़ता है...
वो दुकानो पे नहीं मिलती...

शायद यही जिंदगी की दौड़ है ...!!!😊

जब  बचपन  था,  तो  जवानी  एक  ड्रीम  था...
जब  जवान  हुए,  तो  बचपन  एक  ज़माना  था... !!😊

जब  घर  में  रहते  थे,  आज़ादी  अच्छी  लगती  थी...

आज  आज़ादी  है,  फिर  भी  घर  जाने  की   जल्दी  रहती  है... !!😊

कभी  होटल  में  जाना  पिज़्ज़ा,  बर्गर  खाना  पसंद  था...

आज  घर  पर  आना  और का  खाना  पसंद  है... !!!😊

स्कूल  में  जिनके  साथ  झगड़ते  थे,  आज  उनको  ही  इंटरनेट  पे  तलाशते  है... !! 😊

ख़ुशी  किसमे  होतीं है,  ये  पता  अब  चला  है...

बचपन  क्या  था,  इसका  एहसास  अब  हुआ  है...

काश  बदल  सकते  हम  ज़िंदगी  के  कुछ  साल..

.काश  जी  सकते  हम,  ज़िंदगी  फिर  एक  बार...!!

👘 जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे
और लोगों से कहते फिरते थे देखो मैंने
अपने हाथ जादू से हाथ गायब कर दिए
|🌀🌀

✏जब हमारे पास चार रंगों से लिखने
वाली एक पेन हुआ करती थी और हम
सभी के बटन को एक साथ दबाने
की कोशिश किया करते थे |❤💚💙💜

👻 जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे
ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके..👥

👀जब आँख बंद कर सोने का नाटक करते
थे ताकि कोई हमें गोद में उठा के बिस्तर तक पहुचा दे |

🚲सोचा करते थे की ये चाँद
हमारी साइकिल के पीछे पीछे
क्यों चल रहा हैं |🌙🚲

🔦💡On/Off वाले स्विच को बीच में
अटकाने की कोशिश किया करते थे |

🍏🍎🍉🍑🍈 फल के बीज को इस डर से नहीं खाते
थे की कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए |

🍰🎂🍧🏆🎉🎁 बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे
ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले |

🔆फ्रिज को धीरे से बंद करके ये जानने
की कोशिश करते थे की इसकी लाइट
कब बंद होती हैं |

🎭  सच , बचपन में सोचते हम बड़े
क्यों नहीं हो रहे ?

और अब सोचते हम बड़े क्यों हो गए ?⚡⚡

🎒🎐ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो💕

भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी...

मगर मुझको लौटा दो बचपन
का सावन ....☔

वो कागज़
की कश्ती वो बारिश का पानी..🌊🌊🌊

Bachpan ki storyes 🔽🔽🔽🔽🔽🔽

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बचपन कि ये लाइन्स .
जिन्हे हम दिल से गाते
गुनगुनाते थे ..
और खेल खेलते थे ..!!
तो याद ताज़ा कर लीजिये ...!!

▶  मछली जल की रानी है,
       जीवन उसका पानी है।
       हाथ लगाओ डर जायेगी
       बाहर निकालो मर जायेगी।

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▶  आलू-कचालू बेटा कहाँ गये थे,
       बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।
       बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,
       मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।

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▶  आज सोमवार है,
       चूहे को बुखार है।
       चूहा गया डाक्टर के पास,
       डाक्टर ने लगायी सुई,
       चूहा बोला उईईईईई।

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▶  झूठ बोलना पाप है,
       नदी किनारे सांप है।
       काली माई आयेगी,
       तुमको उठा ले जायेगी।

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▶  चन्दा मामा दूर के,
       पूए पकाये भूर के।
       आप खाएं थाली मे,
       मुन्ने को दे प्याली में।

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▶  तितली उड़ी,
       बस मे चढी।
       सीट ना मिली,
       तो रोने लगी।
       ड्राईवर बोला,
       आजा मेरे पास,
       तितली बोली ” हट बदमाश “।

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▶  मोटू सेठ,
       पलंग पर लेट ,
       गाडी आई,
       फट गया पेट

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