Wednesday, January 31, 2018

बाकी है

*परिंदे रुक मत तुझमे जान बाकी है*
*मन्जिल दूर है, बहुत उड़ान बाकी है*

*आज या कल मुट्ठी में होगी दुनियाँ*
*लक्ष्य पर अगर तेरा ध्यान बाकी है*

*यूँ ही नहीं मिलती रब की मेहरबानी*
*एक से बढ़कर एक इम्तेहान बाकी है*

*जिंदगी की जंग में है हौसला जरुरी*
*जीतने के लिए सारा जहान बाकी है।*
🌹 🙏Happy nice day🙏 🌹

Thursday, January 25, 2018

कुल्हड़ में चाय

“कुल्हड़ में चाय”⚱
हिन्दी के एक महान लेखक 👨🏼👨🏼👨🏼👨🏼👨🏼👨🏼👨🏼‍🏫हमेशा मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीते थे।
एक बार उनके मित्र ने पूछा कि, चीनी मिट्टी का कप ☕इतना खुबसूरत, चिकना और चमकीला होता है ।
फिर भी तुम इसे छोड़ कर बेडोल , बदसूरत मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीते हो आखिर क्यों ?
लेखक ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया, देखो भाई, कप जो है वह गोरी अंगरेजी मेम है... 👱🏻‍♀
दिनभर पता नहीं कितनों के होंठों से लगती है..
परन्तु कुल्हड़ शुद्ध भारतीय नारी है... 👩🏻
जो केवल एक की ही हो के खतम हो जाती है।
👏👏👏

Friday, January 12, 2018

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं।

*Lovely poem.*

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।।

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।।

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।।

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।।

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।