Sunday, August 4, 2019

एक नास्तिक की भक्ति

हरिराम एक मेडिकल स्टोर का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई 💊कहाँ रखी है।
वह इस व्यवसाय को बड़ी सावधानी और बहुत ही निष्ठा से करता था।

दिन भर उसकी दुकान में  भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों💊 को सावधानी और समझदारी से देता था।

परन्तु उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था । वह एक नास्तिक था,उसका मानना था की प्राणी मात्र की सेवा करना ही सबसे बड़ी पूजा है। और वह जरूरतमंद लोगों को दवा निशुल्क भी दे दिया करता था।
और समय मिलने पर वह मनोरंजन हेतु अपने दोस्तों के संग दुकान में लूडो खेलता था।

एक दिन अचानक बारिश🌧 होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, दोस्तों को बुला लिया और सब दोस्त मिलकर लूडो खेलने लगे।

तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भींगा था।

हरिराम लूडो खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।

ठंड़ से ठिठुरते हुए उस बच्चे ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए। बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि अब मेरी मां बच जाएगी।

उस लड़के की पुकार सुनकर लूडो खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई देने को उठा, लूडो के खेल में व्यवधान के कारण  अनमने से दवाई देने के लिए उठा ही था की बिजली चली गयी। अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।

दवा के पैसे दे कर लड़का👨 खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया।
अंधेरा होने के कारण खेल बन्द हो गया और दोस्त भी चले गऐ।

अब वह दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था। तभी लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा की शीशी थी। जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था और लूडो  खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि खेल समाप्त करने के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा !!

उसका दिल 💓जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की विश्वसनीयता पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा।

यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को पिला दी, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी  छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपने लूडो खेलने के शौक को कोसने लगा और दूकान में खेलने के अपने शौक   को छोड़ने का निश्चय कर लिया
पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब उस गलत दी दवा का क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ 👵🏻 को बचाया जाए?

सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम👨 को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा।

पहली बार श्रद्धा से उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके श्री बांके बिहारी का छोटा सा चित्र दुकान के उदघाटन के वक्त लगा दिया था , पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से श्री बांके बिहारी को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।

उन्होंने कहा था कि भगवान 🙏की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और श्री बांके बिहारी जी में हर बिगडे काम को ठीक करने की शक्ति है । हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने हाथ  जोड़कर, आंखें👀 बंद करके कुछ बोलते हुऐ  देखा था।

उसने भी आज पहली बार दूकान के कोने में रखी उस धूल भरी श्री बांके बिहारी श्री कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर🙏 वहीं खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम बहुत अधीर हो उठा। क्या बच्चे ने माँ को दवा समझ के जहर पिला दिया ? इसकी माँ मर तो नही गयी !!

हरिराम का रोम रोम कांप उठा ।पसीना पोंछते हुए उसने संयत हो कर धीरे से कहा- क्या बात है बेटा अब तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी...बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के निकट पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी?
हरिराम हक्का बक्का रह गया। क्या ये सचमुच श्री बांके बिहारी जी का चमत्कार है !

हाँ! हाँ ! क्यों नहीं? हरिराम👨 ने चैन की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!
पर मेरे पास पैसे नहीं है।"उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।

कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना। 🧒लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।

हरिराम की आंखों से अविरल आंसुओं की धार बह निकली। श्री बांके बिहारी को धन्यवाद 🙏देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी छाती से पोंछने लगा और अपने माथे से लगा लिया
आज के चमत्कार को वह पहले अपने परिवार को सुनाना चाहता था।

जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही

!!!! जय श्री राधे राधे जी    !!!!

Thursday, August 1, 2019

Munshi

उनकी किताबों में ना अश्लीलता थी,
ना ही था कॉलेज रोमांस... 🤔

हर कहानी में देश, समाज, बिरादरी, संस्कृति, किसानों, छोटा-मोटा वाक् युद्ध, मानविकी, समाज विज्ञान, व सामाजिक कुरीतियों का उल्लेख अनेक आयामों में विविधता से सनी थी ।

ना चेतन..... न रुश्दी थे.....

शायद

कोई साहित्य का संत था......

वो हिंदी कथा साहित्य के कभी न भूलने वाला नाम महान साहित्यकार, उपन्‍यास सम्राट ✍️मुंशी प्रेमचंद 😊 (धनपत राय) थे।

प्रेमचंद के मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

👉 हुआ यूं​ कि 1930 में मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली।

👉 उसका नाम रखा गया- #हंस

👉 पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे, तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे।

👉 केएम मुंशी कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे. उन्होंने गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया।

👉 केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा। हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा।

👉 महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद प्रेमचंद ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विद्रोही तेवर अपना लिए।

👉 यह पत्रिका 💂‍♂️अंग्रेजों 💂‍♀️के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी।

👉 इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न #सामाजिक और #राजनीतिक_समस्याओं पर चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के #आम_जनमानस को अंग्रेजी राज के #विरुद्ध_जाग्रत किया जा सके।

👉 इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की #आलोचना होती थी।हंस के काम से अंग्रेजी सरकार महज #2_साल में तिलमिला गई।

👉 उसने प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया। पत्रिका बीच में कुछ दिनों के लिए बंद हो गई और प्रेमचंद कर्ज में डूब गए, लेकिन लोगों के जेहन में #हंस का नाम चढ़ गया और इसके #संपादक_मुंशी_प्रेमचंद’भी।

👉 स्वतंत्र लेखन में #प्रेमचंद उस समय बड़ा नाम बन चुके थे। उनकी कहानियां और उपन्यास लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे।

👉 वक्त के साथ वे पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय होते चले गए। आज की हालत यह है कि यदि कोई #मुंशी का नाम ले ले तो उसके आगे #प्रेमचंद का नाम अपने आप ही आ जाता है।

👉प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामा के एक विशेष प्रसंग को लेकर सबसे पहली रचना लिखी।

👉 13 साल की आयु में इस रचना के पूरा होते ही प्रेमचन्द साहित्‍यकार की पंक्ति में खड़े हो गए। सन् 1894 ई० में.... "#होनहार_बिरवार_के_चिकने_चिकने_पात"
नामक नाटक की रचना की।

👉 सन् 1898 में एक #उपन्यास लिखा, लगभग इसी समय "#रुठी_रानी" नामक दूसरा #उपन्यास जिसका विषय #इतिहास था की रचना की।

👉 सन 1902 में #प्रेमा और सन् 1904-05 में "#हम_खुर्मा_व_हम_सवाब" नामक उपन्यास लिखे गए।

👉 इन उपन्यासों में #विधवा_जीवन और #विधवा_समस्या का चित्रण प्रेमचंद ने काफी अच्छे ढंग से किया।

👉 1907 में पांच कहानियों का संग्रह #सोजे_वतन (वतन का दुख दर्द) की रचना की।

👉 अंग्रेज शासकों को इस संग्रह से बगावत की झलक मालूम हुई। इस समय प्रेमचन्द #नवाब_राय के नाम से लिखा करते थे।

👉 इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचंद ने #दयानारायण_निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी #नवाब_राय या #धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे.

👉 तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार #प्रेमचंद नाम सुझाया, यहीं से #धनपतराय हमेशा के लिए #प्रेमचन्द हो गये।

👉 सेवा सदन", "प्रेमाश्रम", "रंगभूमि", "निर्मला", "गबन", "कर्मभूमि", तथा 1935 में "गोदान" की रचना की।

👉 "गोदान" उनकी सभी रचनाओं में सबसे ज्यादा मशहूर हुई।

👉 अपनी जिंदगी के आखिरी सफर में "#मंगलसूत्र" नामक अंतिम उपन्यास लिखना आरंभ किया, दुर्भाग्यवश "मंगलसूत्र" को 😥अधूरा ही छोड़ गए।

👉 अपने स्कूल के समय में आर्थिक समस्याओं से चलते इन्होने पुस्तकों की दुकान पर भी कार्य किया.

👉 आर्थिक कारणों के चलते उन्हें अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. जिसके बाद वर्ष 1919 में पुनः दाखिला लेकर आपने बी.ए की डिग्री प्राप्त की.

👉 इससे पहले उन्होंने ✍️ "महाजनी सभ्यता" नाम से एक मशहूर लेख भी लिखा था।

उनके जीवन काल में कुल 9 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-
1.'सप्‍त सरोज',    2. 'नवनिधि',      3.'प्रेमपूर्णिमा',    4.'प्रेम-पचीसी',     5.'प्रेम-प्रतिमा',      6.'प्रेम-द्वादशी', 7.'समरयात्रा',   8.'मानसरोवर' : भाग 1 व 2  और
9. 'कफन' हैं। 

👉 उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी कहानियाँ
✍️ 'मानसरोवर'✍️ शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई।

👉 प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ✍️ 'पंच परमेश्‍वर', ✍️'गुल्‍ली डंडा', ✍️'दो बैलों की कथा', ✍️ 'ईदगाह',
✍️'बड़े भाई साहब', ✍️ 'पूस की रात', ✍️ 'कफन',
✍️ 'ठाकुर का कुआँ', ✍️'सद्गति', ✍️ 'बूढ़ी काकी', ✍️'तावान', ✍️ 'विध्‍वंस', ✍️ 'दूध का दाम',’✍️'मंत्र
✍️‘नमक का दरोगा' आदि नाम लिये जा सकते हैं।

👉 जन्म: 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी
👉 मृत्यु: 8 अक्तूबर 1936, वाराणसी

👉 मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया।

👉 गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है।

👉 यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहाँ उनकी एक प्रतिमा भी है।

👉 प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी (बाल_विधवा) ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे।

👉 उनके बेटे अमृत राय ने #क़लम_का_सिपाही नाम से पिता की ✍️जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं।

👉प्रेमचंद जिस विद्यालय में शिक्षण का कार्य करते थे, वहाँ उनकी स्मृति में प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है.

विद्वान कभी मरते नहीं, वे सदैव अमर रहेंगे.....
💐🙂🙏जन्म दिवस पर नमन 🙏😊💐