Saturday, December 15, 2018

आखिर वो अंतर रह ही गया

आखिर वो.अंतर रह ही गया ! (साभार)

बचपन में जब हम ट्रैन की सवारी  करते थें, माँ घर से सफर के  लिए खाना बनाकर लें जाती थी l पर ट्रैन में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा नें समझाया ये हमारे  बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह  पैसे खर्च कर सकते है,  हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो वर्ग घर से भोजन बांध  कर लें जा रहें हैंl स्वास्थ  सचेतन हैं ,,

आखिर वो अंतर रह ही गया !

बचपन में जब हम सूती कपड़ा पहनते थें, तब वो वर्ग टेरीलीन का वस्त्र पहनता था l बड़ा  मन करता था पर  पापा कहते हम इतना खर्च  नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरेलिन पहने तब वो वर्ग सूती  के कपड़े पहनने  लगा l सूती  कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च  नहीँ कर सकते ,,

आखिर वो अंतर रह ही गया !

बचपन में जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनो के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनो के पास का वो हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो वर्ग घुटनो के पास फटे पतलून महंगे दामों  मे बड़े दुकानों  से खरीदकर पहन रहा है ,,

आखिर वो अंतर रह ही गया !

बचपन में हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते,  तब वे
स्कूटर पर जाते ! जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो safari पर जाते दिखे ,,

आखिर वो अंतर रह ही गया !

और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर Safari खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साइकलिंग करते नज़र आये ,,

आखिर वो अंतर रह ही गया !