---------- #मांञ् --'---
---#कवि__रमेश_कुमार_महतो
माञ्! माञ्! माञ्!
तोर दूधेक रीन हामे,
कभू सोधे पारब नाञ्!
हामर गूँह-मूतेक नूड़ा
उठावले आपन हाँथें,
घीन-बास लागल नाञ्
हामर लेल तोर गाते |
घार कारना करले माञ्
हामरा लइके कोरें काँखे,
हामर सुखेक लेल तोञ्
राखले आपन दुख नुकाय || माञ्..|
जाड़ेक समइ कनकनीं जखन
काँपइत हतोव तोर गात,
पेटेक तरें सुखे सपटाय
राखइत हबें सारा राइत |
निजें रइहके भूखे,हामरा
खियवल हबें पेट भोइर,
ढ़ाइप तोइपके राखल हबे
निजेक साध-हिंच्छा तोइर |
तोर छाड़ा जिंदगीं हामर
केउ भगवान कोन्हों नाञ् || माञ्..|
आपन कोखे राखले माञ्
हामरा नौ - दस मास,
पेटेक भीतरे खियाइ पोंसलें
आपन गातेक रकत-मांस |
तोर सिरजले हामे पाइलो
तोरा माञेक रूपे खाँटी,
हामर गाते मास चढ़ाइले
निजेक रकत-मांस बाँटी |
तोर रूपें देखे पाइलों
हाम गोटे दुनियाइ || माञ्..|
सास-ससुर, ननद सबके
सहइत हबे गाइर-माइर,
गोरु-लेरु घार कारना सब
करइत हबे सभे साइर |
हामर करल गुन्हाक लेल
तोञ् कते सुनल हबे बात,
कते बेर रागें - रुसे
तोर पड़ल हतोउ गात |
तोञ् सिरजले हामरा
हामें पइलो तोरा माञ्,
नेम-बरत तीरिथ-पूजा
तोहीं हामर गोटे दुनियाय || माञ्..|
..............#रमेश_कुमार_महतो...........
Thursday, April 19, 2018
मांञ्
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