Friday, November 8, 2019

वक़्त नहीं

हर  ख़ुशी   है  लोंगों   के  दामन  में
पर   एक   हंसी  के  लिये  वक़्त  नहीं

दिन  रात   दौड़ती   दुनिया   में 
ज़िन्दगी   के   लिये  ही   वक़्त नहीं

सारे   रिश्तों  को   तो  हम  मार चुके
अब   उन्हें   दफ़नाने  का   भी वक़्त  नहीं 

सारे   नाम   मोबाइल   में   हैं  
पर   दोस्ती   के   लिये   वक़्त  नहीं 

गैरों   की   क्या   बात  करें  
जब   अपनों   के   लिये    ही वक़्त  नहीं

आखों   में   है   नींद  भरी  
पर   सोने   का  वक़्त   नहीं

दिल  है  ग़मो  से  भरा  हुआ  
पर  रोने  का   भी   वक़्त   नहीं  

पैसों   की  दौड़  में   ऐसे   दौड़े की
थकने   का  भी   वक़्त   नहीं 

पराये  एहसानों   की  क्या   कद्र  करें  
जब  अपने   सपनों   के   लिये  ही  वक़्त  नहीं

तू   ही   बता  दे  ऐ   ज़िन्दगी  
इस   ज़िन्दगी   का   क्या  होगा 
की   हर   पल   मरने   वालों  को
जीने    के    लिये  भी    वक़्त  नहीं 
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