Thursday, August 1, 2019

Munshi

उनकी किताबों में ना अश्लीलता थी,
ना ही था कॉलेज रोमांस... 🤔

हर कहानी में देश, समाज, बिरादरी, संस्कृति, किसानों, छोटा-मोटा वाक् युद्ध, मानविकी, समाज विज्ञान, व सामाजिक कुरीतियों का उल्लेख अनेक आयामों में विविधता से सनी थी ।

ना चेतन..... न रुश्दी थे.....

शायद

कोई साहित्य का संत था......

वो हिंदी कथा साहित्य के कभी न भूलने वाला नाम महान साहित्यकार, उपन्‍यास सम्राट ✍️मुंशी प्रेमचंद 😊 (धनपत राय) थे।

प्रेमचंद के मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

👉 हुआ यूं​ कि 1930 में मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली।

👉 उसका नाम रखा गया- #हंस

👉 पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे, तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे।

👉 केएम मुंशी कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे. उन्होंने गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया।

👉 केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा। हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा।

👉 महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद प्रेमचंद ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर विद्रोही तेवर अपना लिए।

👉 यह पत्रिका 💂‍♂️अंग्रेजों 💂‍♀️के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी।

👉 इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न #सामाजिक और #राजनीतिक_समस्याओं पर चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के #आम_जनमानस को अंग्रेजी राज के #विरुद्ध_जाग्रत किया जा सके।

👉 इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की #आलोचना होती थी।हंस के काम से अंग्रेजी सरकार महज #2_साल में तिलमिला गई।

👉 उसने प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया। पत्रिका बीच में कुछ दिनों के लिए बंद हो गई और प्रेमचंद कर्ज में डूब गए, लेकिन लोगों के जेहन में #हंस का नाम चढ़ गया और इसके #संपादक_मुंशी_प्रेमचंद’भी।

👉 स्वतंत्र लेखन में #प्रेमचंद उस समय बड़ा नाम बन चुके थे। उनकी कहानियां और उपन्यास लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे।

👉 वक्त के साथ वे पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय होते चले गए। आज की हालत यह है कि यदि कोई #मुंशी का नाम ले ले तो उसके आगे #प्रेमचंद का नाम अपने आप ही आ जाता है।

👉प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामा के एक विशेष प्रसंग को लेकर सबसे पहली रचना लिखी।

👉 13 साल की आयु में इस रचना के पूरा होते ही प्रेमचन्द साहित्‍यकार की पंक्ति में खड़े हो गए। सन् 1894 ई० में.... "#होनहार_बिरवार_के_चिकने_चिकने_पात"
नामक नाटक की रचना की।

👉 सन् 1898 में एक #उपन्यास लिखा, लगभग इसी समय "#रुठी_रानी" नामक दूसरा #उपन्यास जिसका विषय #इतिहास था की रचना की।

👉 सन 1902 में #प्रेमा और सन् 1904-05 में "#हम_खुर्मा_व_हम_सवाब" नामक उपन्यास लिखे गए।

👉 इन उपन्यासों में #विधवा_जीवन और #विधवा_समस्या का चित्रण प्रेमचंद ने काफी अच्छे ढंग से किया।

👉 1907 में पांच कहानियों का संग्रह #सोजे_वतन (वतन का दुख दर्द) की रचना की।

👉 अंग्रेज शासकों को इस संग्रह से बगावत की झलक मालूम हुई। इस समय प्रेमचन्द #नवाब_राय के नाम से लिखा करते थे।

👉 इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचंद ने #दयानारायण_निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी #नवाब_राय या #धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे.

👉 तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार #प्रेमचंद नाम सुझाया, यहीं से #धनपतराय हमेशा के लिए #प्रेमचन्द हो गये।

👉 सेवा सदन", "प्रेमाश्रम", "रंगभूमि", "निर्मला", "गबन", "कर्मभूमि", तथा 1935 में "गोदान" की रचना की।

👉 "गोदान" उनकी सभी रचनाओं में सबसे ज्यादा मशहूर हुई।

👉 अपनी जिंदगी के आखिरी सफर में "#मंगलसूत्र" नामक अंतिम उपन्यास लिखना आरंभ किया, दुर्भाग्यवश "मंगलसूत्र" को 😥अधूरा ही छोड़ गए।

👉 अपने स्कूल के समय में आर्थिक समस्याओं से चलते इन्होने पुस्तकों की दुकान पर भी कार्य किया.

👉 आर्थिक कारणों के चलते उन्हें अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पड़ी. जिसके बाद वर्ष 1919 में पुनः दाखिला लेकर आपने बी.ए की डिग्री प्राप्त की.

👉 इससे पहले उन्होंने ✍️ "महाजनी सभ्यता" नाम से एक मशहूर लेख भी लिखा था।

उनके जीवन काल में कुल 9 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-
1.'सप्‍त सरोज',    2. 'नवनिधि',      3.'प्रेमपूर्णिमा',    4.'प्रेम-पचीसी',     5.'प्रेम-प्रतिमा',      6.'प्रेम-द्वादशी', 7.'समरयात्रा',   8.'मानसरोवर' : भाग 1 व 2  और
9. 'कफन' हैं। 

👉 उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी कहानियाँ
✍️ 'मानसरोवर'✍️ शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई।

👉 प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ✍️ 'पंच परमेश्‍वर', ✍️'गुल्‍ली डंडा', ✍️'दो बैलों की कथा', ✍️ 'ईदगाह',
✍️'बड़े भाई साहब', ✍️ 'पूस की रात', ✍️ 'कफन',
✍️ 'ठाकुर का कुआँ', ✍️'सद्गति', ✍️ 'बूढ़ी काकी', ✍️'तावान', ✍️ 'विध्‍वंस', ✍️ 'दूध का दाम',’✍️'मंत्र
✍️‘नमक का दरोगा' आदि नाम लिये जा सकते हैं।

👉 जन्म: 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी
👉 मृत्यु: 8 अक्तूबर 1936, वाराणसी

👉 मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया।

👉 गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है।

👉 यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहाँ उनकी एक प्रतिमा भी है।

👉 प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी (बाल_विधवा) ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे।

👉 उनके बेटे अमृत राय ने #क़लम_का_सिपाही नाम से पिता की ✍️जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेज़ी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं।

👉प्रेमचंद जिस विद्यालय में शिक्षण का कार्य करते थे, वहाँ उनकी स्मृति में प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है.

विद्वान कभी मरते नहीं, वे सदैव अमर रहेंगे.....
💐🙂🙏जन्म दिवस पर नमन 🙏😊💐

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